आयुर्वेदिक जीवन चक्र
आयुर्वेद का ज्ञान हमारे देश में बहुत ही प्राचीन काल से है! दुनिया के प्राचीनतम ग्रंथ वेदों से ही आयुर्वेद निकला है! अपने शरीर को स्वस्थ बनाये रखने की पद्धति और अनेक तरह को रोगों की चिकित्सा और उनसे बचने का ज्ञान तथा स्वस्थ रहते हुये लम्बी आयु बनाये रखने के ज्ञान को ही आयुर्वेद कहा गया है! हमारे जन्म के साथ ही अथवा इस पृथ्वी पर जन्म लेने के बाद इ ही शरीर में कोई ना कोई रोग लगा ही रहता है! और जैसे-जैसे शरीर में वृद्धि होती है! वैसे-वैसे रोगों में भी वृद्धि होती रहती है! रोग भी हजारों तरह होते हैं, इसलिये भारतीय दर्शन में रोगियों की देख रेख करना और उन्हें दवाई देना एक सेवा का कार्य माना गया है! भारतीय सभ्यता में दूसरों की सेवा करना ईश्वर की सबसे बड़ी भक्ति मणि गयी है! भारत की प्राचीन जीवन पद्धति में रोगों को ठीक करने के घरेलु नुस्खे काफी प्रचलित थे! इसका अर्थ यह है कि निश्चित रूप से उस समय की शिक्षा में महिलाओं को यह विषय अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाता होगा या फिर परिवार की पारम्परिक शिक्षा प्रणाली में कोई भी स्त्री अपने से बड़ी उम्र की महिलाओं से उत्तरोत्तर यह सिखाती रहती होगी और यह कड़ी लगातार चलती रहती होगी! वैसी स्थिति में यदि घर में किसी को कोई बीमारी हुई हो तो प्रारम्भिक चिकित्सा के रूप में इन घरेलु नुस्खों का प्रयोग आसानी से तत्काल किया जा सकता होगा! बीमारी के अधिक जटिल होने पर ही वैद्य या अच्छे चिकित्सक के पास ले जाते होंगे!
लेकिन जैसे-जैसे जीवन शैली बदली और पश्चिम और पश्चिमी तथा यूरोपीय जीवन शैली का प्रभाव हमारे समाज पर छाता गया वैसे-वैसे यह घरेलु नुस्खों का ज्ञान तथा सीखने - सिखाने की परम्परा ख़त्म होती गई! एक तरह का सभ्यतागत विभेद बड़ी तेजी से फैलता गया की जो लोग इस तरह के घरेलु नुस्खों को जानते हैं, या उनका उपयोग करते है वे सब अशिक्षित और गँवार है! और ऐसा माना गया की भारत में समस्त ग्रामीण जनता इसका प्रतिनिधित्व कराती है! दूसरी और शहर में रहने वाली आबादी अधिक सभ्य है क्यूंकि वह इस तरह के घरेलु उपचारों में कोई विश्वास नहीं रखती बल्कि इसकी जगह पश्चिम से आयी ऐलोपेथी की चिकित्सा में ज्यादा विश्वास रखती है! इसलिये १८ वीं शताब्दी में मैकाले द्वारा विकसित की गई आधुनिक शिक्षा प्रणाली में इस तरह के नुस्खों को पढ़ाने या सिखाने का कोई प्रावधान नहीं रहा होगा! चूँकि शहरी वर्ग की जीवन पद्धति पश्चिम की मान्यताओं और सभ्यता के आधार पर विकसित हो रही थी! इसलिये घर में पारम्परिक रूप से घरेलु नुस्खों को सिखाने की यह परम्परा लगभग ख़त्म सी हो गयी और फिर सरकार और प्रशासन की से भी ऐलोपैथी चिकित्सा को ही प्रोहत्सान दिया गया| परिणाम स्वरुप धीरे-धीरे हमारी बहनें और घर की महिलाएं इस ज्ञान से वंचित होती गयी या उनको यह ज्ञान देने परम्परा ख़त्म होती गई|
वास्तव में आज हम सबको ऐसा तो महसूस होता ही है की स्वास्थ्य ही सबसे बड़ी पूंजी है | जो अच्छी तरह से स्वस्थ है वही सबसे धनी है | यदि हम ऐसा मानते है तो आज की आधुनिक सभ्यता के हिसाब से हमारे समाज के अधिकांश लोग रोगी मिलेंगे, उसका सबसे बड़ा कारण आज की जीवन शैली और खान पान है | आज की आधुनिक (पश्चिमी) सभ्यता की मान्यता है की जितना अधिक तनाव बढ़ेगा उतना अधिक विकास होगा | इसका एक निहितार्थ यह भी है की जितना अधिक तनाव बढ़ेगा उतने अधिक रोग भी होंगे, और ऐसा हमें आज दिखाई भी देता है कि जैसे-जैसे डॉक्टर बढ़ते जाते है, जैसे-जैसे दवाइयां बढती जाती है, जैसे-जैसे हॉस्पिटल बढ़ते जाते है | वैसे-वैसे रोगी और रोग भी बढ़ते रहे हैं | रोगी और रोग बढ़ते जाने का दुसरा कारण यह भी है की हम घरेलू चिकित्सा के नुस्खों से बहुत दूर चले आये है | और साथ ही खाने पीने के व्यवहार को भी भूल गए है| अर्थात हम ये नहीं जान पाते की हम क्या खाये और क्या न खायें| साधारण से साधारण परिवारों में भी इस तरह की कोई जानकारी नहीं रहती की किस मौसम में क्या-क्या खाने से कौन-कौन से लाभ होतें है, और क्या-क्या न खाने से क्या-क्या हानि होती है| अर्थात हमें खान-पान के संयोगों का पता ही नहीं चल पाता इसलिये भी बीमारियां काफी बढाती जाती है|
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घरेलु चिकित्सा आयुर्वेद के ज्ञान से ही निकली हुई एक धरा है इसमें भी सबसे पहले यह ध्यान रखना पडेगा कि स्वास्थ्य क्या है, और वह कैसे अच्छा रखा जा सकता है| इसलिये आयुर्वेद में दिनचर्या और अनुचर्या बारे में काफी विस्तार से बताया गया है | सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक नियमित जीवन जीने के तरीकों पर भी काफी विस्तार से बताया गया है|
कृपया इनका ध्यान अवश्य रखें:
- फलों का रस, अत्यधिक तेल की चीजें, मट्ठा, खट्टी चीज रात में नहीं खानी चाहिए|
- घी या तेल की चीजें खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना चाहिए बल्कि एक-डेढ घंटे के बाद पानी पीना चाहिए |
- भोजन के तुरंत बाद अधिक तेज चलना या दौड़ना हानिकारक है| इसलिए कुछ देर आराम करके ही जाना चाहिए
- शाम को भोजन के बाद शुद्ध हवा में टहलना चाहिए खाने के तुरंत बाद सो जाने से पेट की गड़बड़ियां हो जाती है|
- प्रात:काल जल्दी उठना चाहिए और खुली हवा में व्यायाम या शरीर श्रम अवश्य करना चाहिए |
- तेज धूप में चलने के बाद, शारीरिक मेहनत करने के बाद या शौच जाने के तुरंत बाद पानी कदापि नहीं पीना चाहिए|
- केवल शहद और घी बराबर मात्रा में मिलाकर नहीं खाना चाहिए वह विष बन जाता है|
- खाने पीने में विरोधी पदार्थों को एक साथ नहीं लेना चाहिए जैसे दूध और कटहल, दूध और दही, मछली और दूध आदि चीजें एक साथ नहीं लेना चाहिए|
- सिर पर कपड़ा बांधकर या मौजे पहनकर सोना नहीं चाहिए|
- बहुत तेज या धीमीं रोशनी पढ़ना, अत्यधिक टेलीविजन या सिनेमा देखना, अधिक ठंडी-गर्म वस्तु का सेवन, अधिक मिर्च-मसालों का सेवन, तेज धूप में चलने से बचना चाहिए| तेज धूप में चलना भी हो तो सिर और कान पर कपड़ा बांधकर चलना चाहिए|
- गर्म पानी में निम्बू निचोड़कर और उसमे शहद मिलाकर गुनगुने पानी से लगातार पंद्रह दिन तक सेवन लाभदायक है|
- Diet and Lifestyle Recommendations: Eat foods that boost brain power. Think fruits, veggies, and whole grains. Get plenty of sleep. Limit screen time.
- Potential Imbalances and Remedies: Anxiety and trouble focusing are common. Try calming herbs like Brahmi. Yoga and meditation can also help.
- Balancing Work and Family: Stress is a big challenge. Make time for self-care. Set boundaries between work and home.
- Diet and Lifestyle Recommendations: Eat a balanced diet to stay energized. Practice yoga and exercise to manage stress. Spend time with loved ones.
- Adjusting to Change: Physical and emotional changes happen. Stay active and social. Find new hobbies and interests.
- Diet and Lifestyle Recommendations: Eat light, easily digestible foods. Gentle exercise like walking is great. Focus on mindfulness and meditation.
- Finding Meaning and Purpose: Spend time in nature. Connect with your spiritual side. Help others and share your wisdom.
- Diet and Lifestyle Recommendations: A simple, plant-based diet is ideal. Focus on practices that deepen your spiritual connection.
- Dietary Guidelines: Offer lots of fruits and veggies. Limit sugary drinks and processed foods. Make sure they get enough protein and calcium.
- Lifestyle Practices: Regular exercise is key. Get enough sleep. Teach them stress management skills.
- Stress Management: Yoga and meditation are powerful tools. Find time for hobbies and relaxation.
- Dietary Guidelines: Focus on whole, unprocessed foods. Eat mindfully and avoid overeating.
- Joint Health: Ayurvedic remedies can ease joint pain. Try gentle exercises like Tai Chi.
- Cognitive Function: Eat brain-boosting foods. Stay socially active. Do puzzles and learn new things.
- Dosage and Safety: Talk to an expert before using herbs. Follow dosage guidelines carefully.
- Benefits for Different Stages: It can help with many issues. Stress, fatigue, and joint pain can be alleviated with the practice.
- Recommended Practices: Gentle yoga is great for seniors. Active yoga suits adults. Meditation benefits everyone.
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